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नीरव

दुःख है अपना सुख पराया है मनुज निज  का सताया कुछ न खोया कुछ न पाया फिर भी अहम् में सो न पाया  स्वार्थ है प्रतिपल मोहता हूँ मैं सही ये सोचता खुशियों को  खुद ही रोकता फिर नियति को है कोसता मिथ्या को है सहेजता ओर व्यर्थ को है खोजता संभावनाओं को है समेटता फिर बाट सत्य की जोहता जो हो मनुष्य तो एक बार सत्य का संकल्प लो और जीवन में फिर कभी मत क्रोध को विकल्प दो जो हो समर्थ तो एक बार अपने ह्रदय का रुख करो मिल जायेंगे प्रत्येक उत्तर ,प्रश्न खुद से तो करो निधि अखौरी अप्रैल. १८ ,२०१६ 

Tolerance is the tradition .

Your religion ? I am Hindu ! This will be my answer if anybody in India will ask but I am not gonna say it when I am asked the same question in Europe or America or any other country. My answer will be "I am Indian". It has to be my answer and that is the only answer which is required, accepted and understood once I step out of my country. Religion is not above the nation and people of all religions must understand this. Having said so, the challenge here is Religion must not invoke anti-nationalism and must be practiced to protect the country where it is practiced and it must find a way to co-exist with the other religions. The willingness and capacity to co-exist is tolerance. Tolerance is an individual talent. The reason I call it a talent is, that it needs to be identified at a very young age, nurtured until a certain age and then be used for a collective motive. In India, the continuous effort to nurture this talent made it inherent and gra

मेरे मन की बात

बात  सिर्फ कन्हैया जी की नहीं है अभी , बात उन मुददों की है जो काफी वक़्त से जेहन में हैं  , किसके जेहन में हैं  इसका जवाब देना मुश्किल है , मुश्किल नहीं पर हाँ शब्द कौन सा उपयोग करूँ ये मुश्किल है।   एक शब्द है अंगेज़ी का  पॉलिटिकली करेक्ट होना । फैशन के दौर में पॉलिटीकली करेक्ट होना फैशन भी है , बुद्धिमान और बुद्धिजीवी होने का प्रतीक भी और आज के दौर की राजनीति की जरुरत भी मगर मेरा इरादा यहाँ पॉलिटिकली करेक्ट होने का बिलकुल भी नहीं है तो मैं बगैर किसी दिक्कत के लिख सकती हूँ की बात उन मुद्दों की है जो काफी वक़्त से  जेहन में है , हिन्दुओं के जेहन में हैं।कन्हैया जी और उन जैसे बहुतों को दिक्कत है , दिक्कत इस बात से है की अफज़ल गुरु को फांसी हो गयी। भारत जहाँ हज़ारों मुददे हैं सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने को , किसी भी सरकार के खिलाफ , वो मोदी हों या मनमोहन। मुददों की कमी नहीं है छात्रों के पास। कुछ नहीं तो सीट्स ही बढ़वा लेते पीएचडी में दाखिले के लिए। थोड़ी स्कालरशिप भी बढ़ जाती तो अच्छा ही रहता। होस्टल्स में सीट्स बढ़वा लेते , कुछ भी ऐसा करते की लगता की छात्र नेता ने छात्रों  के लिए कुछ किया