नीरव





दुःख है अपना सुख पराया
है मनुज निज  का सताया
कुछ न खोया कुछ न पाया
फिर भी अहम् में सो न पाया 


स्वार्थ है प्रतिपल मोहता
हूँ मैं सही ये सोचता
खुशियों को  खुद ही रोकता
फिर नियति को है कोसता


मिथ्या को है सहेजता
ओर व्यर्थ को है खोजता
संभावनाओं को है समेटता
फिर बाट सत्य की जोहता


जो हो मनुष्य तो एक बार सत्य का संकल्प लो
और जीवन में फिर कभी मत क्रोध को विकल्प दो
जो हो समर्थ तो एक बार अपने ह्रदय का रुख करो
मिल जायेंगे प्रत्येक उत्तर ,प्रश्न खुद से तो करो

निधि अखौरी
अप्रैल. १८ ,२०१६ 



Comments

Popular posts from this blog

PK : The formal objection !

Tolerance is the tradition .

Towards a better democracy or towards the end of it?